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2012 का अन्ना आन्दोलन भारतीय राजनीति का Turing point था!

 क्या 2011--2012 में क्रांगेस पार्टी ने अपने पतन का बीज बो दिया था !

Anna Hazare
  credit:-livemint.com

जी हां 2011-12 का दौर जब अन्ना हजारे का आंन्द़ोलन भष्टाचार के खिलाफ चल रहा था और उसे जनमानस,समाजिक संगठन और राजनितिक समर्थन मिल रहा था

ऐसे माहौल में योग गुरू बाबा रामदेव मैदान में उतरते हैं,  और उनके आन्दोलन को भी जनमानस का समर्थन मिलता हैं

बाबा रामदेव के साथ तत्कालीन क्रांग्रेस सरकार दोहरा खेल खेलती हैं एक तरफ वार्ता करती हैं दुसरे तरफ बलपुवर्क बाबा रामदेव को रामलीला मैदान से अपमानित कर बाहर करती हैं,  यह जनमानस, समाजिक संगठनों और राजनीतिक संगठनों की सरकार विरोधी भावना को और मजबुत कर देता हैं।

सरकार के इस रवैया का विपक्ष के लगभग सभी दलों द्बारा आलोचना एंव विरोध होता हैं सुप्रीम कोर्ट भी सरकार से जबाब तलब करती हैं।

जब चारों तरफ सरकार के इस कार्यवाई पर आलोचना एंव विरोध दौर चल रहा था। उसी समय अन्ना हजारे का आन्दोलन जो धीरें धीरें आगे बढ रहा था, मुख्य स्टेज या कहिये main front पर आ जाता हैं।

यहां ध्यान देने वाली बात यह हैं की उस वक्त सभी विपक्षी दल भष्टाचार पर सरकार के खिलाफ खुल कर या दबी जुबान से अन्ना आन्दोलन का साथ थें।

पंरन्तु BJP खुलकर भष्टाचार पर बाबा रामदेव एंव अन्ना हजारे समर्थन में आ गयी। 

यधपि अन्ना हजारे ने बिजेपी को अपने आन्दोलन में शामिल नही किया परन्तु  बीजेपी और आर एस एस ने भष्टाचार पर अन्ना हजारे के प्रति समाजिक संगठनों एवं जनमानस के बढते समर्थन को भाफ गयी थी, पर्दे के पीछे से आर एस एस लोगों को इस आन्दोलन से जोडने लगी और बीजेपी राजनीतिक मैदान में भष्टाचार के खिलाफ माहौल तैयार करने लगी।

फ्रन्ट पर अन्ना हजारे और बीजेपी तथा पृस्टभूमी में आर एस एस ने कार्य कर 70 साल से  भष्टाचार के खिलाफ जो भावना थी उसे आक्रोश में बदल दिया।

केन्द्र बैठी क्रांग्रेस सरकार  जनमानस के इस मुड को देख नही पायी और  अन्ना हजारे जनभावना की उबाल लेती इस प्रचंड़ शक्ति को संभाल नही पाये।

क्रांग्रेस पार्टी इस प्रचंड़ शक्ति देख नही पा रही थी, पंरन्तु एक तरफ बीजेपी आर एस एस दुसरी तरफ अरविंद केजरीवाल इस प्रचंड़ शक्ति के उपर सवार हो दिल्ली फतह की तैयारी कर रहे थे।

अन्ना आन्दोलन के बाद, अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बना दिल्ली फतह को निकल लिए और 15 साल पुरानी क्रांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार को उतार दिल्ली की सिगांसन पर बैठ गये।

उधर बीजेपी,आर एस एस नरेन्द्र मोदी को सारथी बनाकर  इस प्रचंड़ शक्ति के तुफान पर चढ दिल्ली की उच्ची वाली सिंहासन पर जा बैठी।

केन्द्र की 10 साल पुरानी UPA सरकार को और देश की तमाम राजनीतिक दलों को समझ नही आ रहा था। की उनके साथ ये क्या हो गया।


मजे की बात हैं की घटना 2014 में घटी और आज 2021 आ चुका हैं भाजपा दुबारा पहले से ज्यादा सीट जीत कर सरकार बना चुकी हैं,  क्रांग्रेस समेत तमाम गैर भाजपा दल को आज तक यह बात समझ नही आ रही हैं कि उनके साथ हुआ क्या हैं।

कभी EVM पर तो कभी चुनाव आयोग पर आरोप लगा अपने को संत्वाना देते हैं तो कभी काठ़ की हाडी़ को चुल्हें पर चढ़ा कर खिचड़ी पकाने को सोचते हैं।(ध्यान रखिये मैं काठ़ की हाड़ी बोल रहा हूं आगे बताऊगा काठ़ की हाड़ी के बारे में)


 मैं 2014 में समाजवादी पार्टी झारखंड का मिडिया प्रभारी था। पार्टी के अन्दर बार बार इस बिन्दु पर चर्चा करता था पंरन्तु पार्टी इसे खारिज कर देती थी। जब मैं आज भी यह कहता हूं की 2014 के बाद भारतीय राजनीति की दिशा और दशा दोनों बदल चुकी हैं  तो आज भी लोगों को समझ नही आती हैं कि मैं बोल क्या रहा हूं. परन्तु यह एक कटु सत्य हैं इस सत्य को जितना जल्दी समझ लें उतना ही अच्छा होगा गैर भाजपा दलों के लिए


आज का राजनीतिक परिदृश्य( समीकरन )क्या कहती हैं ?

आज भारत में राजनीतिक विचारधारा का टुट फुट का दौर चल रहा हैं(हो सकता हैं अभी आपको मेरी बात कुछ अटपटा लगें पर 2 मई 2021 के पांच राज्यो के परिणाम के बाद न लगे)


पहले कांग्रेस शासित प्रदेश का किला ढह गया,उसके बाद अति मजबूत समझे जाने वाले बामपंथ का किला त्रिपुरा ढह गया, दक्षिण का अभेद र्दुग में भी सेध मारी हो चुकी है और अब ममता दीदी का भी र्दुग भी ढहता दिखायी दे रहा है मुझे कोई आश्चंय नही होगा अगर 2 मई 2021 के बाद केरल ,तमिलनाडू में भी भाजपा बढ़त बनाते हुए दिखायी देता हैं।


आज भी गैर भाजपा दल पुरानी राजनीतिक समीकरण  पिछडा़ दलित, यादव मुसलिम,एंव अगड़ी पिछड़ी पर भरोसा कर चल रहें हैं यह समीकरण कुछ वोट या कुछ सीट दिला सकता हैं सत्ता नही आज यह सभी समीकरण का घार भाजपा के राष्टवाद, सांशकि्तिक राष्टवाद एवं हिन्दुवाद के आगे कुद हो चुका हैं।

यह समीकरण अब काठ़ की हाड़ी बन गयी है जिसे बार बार चूल्हे पर नही चढा सकते हैं 


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