चयनात्मक प्रदर्शन मनोविज्ञान के अंदर एक सिद्धांत है,जिसे अक्सर मीडिया और संचार अनुसंधान में प्रयोग किया जाता है।
यह ऐसे लोगों की प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है। जो विरोधाभासी जानकारी से बचते हुए, अपने पहले से मौजूद विचारों को व्यक्त करते है।
अगर भारत के संदर्भ में बात करें,तो भारत में लगभग हर राजनीतिक दल कहीं ना कहीं सिलेक्टिव पॉलिटिक्स का सहारा लेती है। चाहे वह कांग्रेस पार्टी हो या वाम दल हो या फिर भाजपा हो, लेकिन इन सभी दलों के सिलेक्टिव पॉलिटिक्स से थोड़ा अलग सिलेक्टिव पॉलिटिक्स सिस्टम भाजपा का है, जहां आकर सभी दूसरे राजनीतिक दल सियासी मात खा जाते हैं।
भारतीय राजनीति में सिलेक्टिव पॉलिटिक्स शब्द को एक गर्म राजनीतिक बहस के केंद्र में लाने का श्रेय भी भाजपा को जाता है।
विगत कुछ वर्षों में जब से भाजपा सत्ता में आई है, कई अहम राजनीतिक फैसलों के समय यह बहस के केंद्र में आ जाता है।
कश्मीर से धारा 370 हटाने के क्रम में कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला को नज़रबंद किया गया तो कांग्रेस एवं उसके सहयोगी दलों द्वारा इसका विरोध किया जाने लगा एवं रिहाई की मांग की जाने लगी।
सिलेक्टिव पॉलिटिक्स फिर बहस के केंद्र में की आपने (कांग्रेस) शेख अब्दुल्ला को 10 वर्षों तक नजरबंद रखा तो सही हम(भाजपा) रखे तो गलत।
इसी प्रकार अनेकों राजनीतिक घटनाक्रम भारतीय लोकतंत्र में हुए हैं, जिस पर भाजपा, कांग्रेस एवं अन्य दलों पर सिलेक्टिव पॉलिटिक्स का आरोप लगता रहा है। मसलन
1. 90 के दशक में कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की हत्या एवं पलायन।
2. देश के कुछ भागों में हिंदुओं पर होने वाला अत्याचार।
इसी प्रकार 29 जुलाई को देश के उन 49 जाने-माने फिल्मकारों, कलाकार, इतिहासकार प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखते हैं।
झारखंड में हुए मॉब लिंचिंग पर इसके जवाब में भाजपा समर्थक 61 फिल्मकार, कलाकार, इतिहासकार उन पर सिलेक्टिव होने का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखते हैं ,कि आज आपको संप्रदायिक एवं हिन्दू आक्रामकता दिखाई देती है, परंतु उत्तर प्रदेश के कैराना से हिंदुओं के पलायन पर कुछ नहीं बोले 90 के दशक में जम्मू कश्मीर से हिंदू पलायन एवं जनसंहार पर आपकी आत्मा क्यों सो रही थी। केरल की लव जिहाद पर आप क्यों चुप रहे आदि और यह गलत भी नहीं है।
एक संजीदा इंसान जो अपने को किसी राजनीतिक विचारधारा से जुड़ा नहीं मानता हो, तो फिर उसे हर उस घटना की तटस्थ भाव से सही या गलत कहना चाहिए।
जो उसे लगता है यह देश और समाज के लिए सही है या गलत है, परंतु आप ऐसा नहीं करते हैं, एवं किसी खास एक घटना को पकड़कर सरकार या पार्टी विशेष को गलत कहेंगे तो आपके सोच पर प्रश्न तो उठेगा ही।
देश के पिछले 70 सालों की राजनीति को देखे तो कांग्रेसी एवं वामपंथी विचारधारा देश के हर चीज पर अपना पकड़ बनाया हुआ था, चाहे देश का शिक्षा व्यवस्था हो, विश्वविद्यालय हो या मीडिया हो या फिर राजनीतिक हर घटना को सिलेक्टिव तरीके से लिया जाता था, जो उनके राजनीतिक विचारधारा के अनुकूल हो। परंतु एक मजबूत विपक्ष नहीं होने के कारण उनके सिलेक्टिव विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगता था ,लेकिन आज भाजपा के आने के बाद उनके इस सिलेक्टिव सोच पर प्रश्न किया जाने लगा है।
जहां तक भाजपा की राजनीतिक विचारधारा की बात है, वह सब के सामने है वह खुलकर बहुसंख्यक वर्ग की बात करते है और कट्टर राष्ट्रवादी विचारधारा रखती है। अगर हाल के समय में बीजेपी के एक्टिव पॉलिटिक्स को देखें
जैसे:-
मॉब लिंचिंग के मामले पर कोई बड़े लीडर का बयान ना आना, सिर्फ राजनीतिज्ञ का यह कहकर निकल जाना कि कानून व्यवस्था का मामला है, कानून अपना काम करेगा।
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