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भारतीय राजनीति: लड़ाई वर्चस्व एवं अस्तित्व रक्षा की।


 जब से भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी का पदार्पण हुआ है, वर्षों से चला आ रहा वर्चस्व की लड़ाई  तीव्र और त्तीवतर
 होती जा रही है, ऐसा नहीं है कि यह लड़ाई भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के आने से शुरू हुआ है, नहीं यह तो उससे पहले से चला आ रहा है।
 फर्क यह था कि जो आज वर्चस्व के लिए लड़ रहा है वह कल तक अस्तित्व बचाने के लिए लड़ रहा था घटनाक्रम में सिर्फ पात्रों का स्थान बदल गया है, लड़ाई तो वही पुरानी है। पहले इस लड़ाई का दायरा सीमित था, युद्ध सीमित थे परंतु आज युद्ध असीमित और दायरा सीमित हो चुका है।
 जी हां आप सही समझे हैं, मैं बात कर रहा हूं ज़ी न्यूज़ के सुधीर चौधरी और रिपब्लिक भारत के अर्नब गोस्वामी पर हुए एफ आई आर की ।


     सुधीर चौधरी का गुनाह यह है कि उसने "रोशनी योजना"के तहत जम्मू कश्मीर में खास वर्ग को दिये जमीन पर आवाज उठाया और इसे जमीन जिहाद कहां।
अर्नब गोस्वामी का दोष यह है कि उसने पालघर साधु हत्याकांड पर , उसके तह में जमकर कांग्रेेस एवं सोनिया गांधी पर  प्रश्न उठाया।
 फिर क्या था मीडिया की आजादी  की बात करने वालों को बुरा लग गया, कर दिया है FIR, इसी प्रकार झारखंड का एक फल  दुकानदार आपने दुकान पर बैनर लगा रखा था " हिंदू फल दुकान" झारखंड सरकार को धर्मनिरपेक्षता खतरे में दिखा, कर  दिया एफ आई आर दुकानदार पर , सारे देश में हर शहर में एक नहीं कई दुकानों पर बोर्ड टंगा मिलेगा मुस्लिम होटल, मुस्लिम फल दुकान, पर उसे धर्मनिरपेक्षता खतरे में नहीं आता है।
 प्रथम दृष्टिया यह मामला हिंदुत्व बनाम धर्मनिरपेक्षता का दिखाई देता है, राष्ट्रवाद बनाम धार्मिक कट्टरता का दिखाई देता है। परंतु ऐसा नहीं है यह तो सिर्फ बाहरी आवरण मात्र है। देश
की सारी प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया दो झंडे के तले खड़े हो गए  है जंग के मैदान में एक अपने को राष्ट्रवादी, देशभक्त कहता है, दूसरा अपने को धर्मनिरपेक्ष, देश  का रक्षक एवं संविधान का रक्षक कहता है।
  दोनों और के धनुर्धर सोशल मीडिया पर शब्द बाण चला रहे हैं। गदाधर गदा युद्ध कर रहे हैं,
      परंतु यह लड़ाई देश की सबसे बड़ी राजनीतिक दल भाजपा के वर्चस्व एवं कांग्रेस, वामदलों की अस्तित्व की लड़ाई है, एक अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए लड़ रहा है, और दूसरा अपना वजूद बचाने के लिए लड़ रहा है।
इस लड़ाई को समझने के लिए इन दोनों पक्षों  की राजनीति को समझिए कांग्रेस और वामदलों की पिछले 70 वर्षों  के राजनीति के पैटर्न को देखिए मुस्लिम, ईसाई को खुश करो एवं बहुसंख्यक वर्ग को जाति के आधार पर खंडित करो और बहुसंख्यक वर्ग को धर्मनिरपेक्षता, उदारता, धार्मिक सहिष्णुता का पाठ पढ़ा कर भ्रमित करके रखो, ताकि अपना वर्चस्व बना रहे। अपने इस राजनीतिक दर्शन में सफलता देख ये मतांध होकर इसका प्रयोग इतना गहराई में जाकर करने लगे की बहुसंख्यक वर्ग में असंतोष बढ़ने लगा।


भाजपा धर्मनिरपेक्षता को मुस्लिम तुष्टीकरण कहता है, खुलकर बहुसंख्यक वर्गों की बात करता है, कांग्रेस , वाम दल जिसे धार्मिक भेदभाव कहता है, उसे भाजपा देशहित और राष्ट्रवाद कहती है,(CCA, शाहीन बाग) बहुसंख्यक वर्ग आंख बंद कर मान रही है और माने क्यों नहीं, क्योंकि कांग्रेस एवं वामदलों ने पिछले 70 सालों में धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक सहिष्णुता, के नाम पर बहुसंख्यकओ के मन में जो भय, निराशा एवं आक्रोश को पैदा किया है, उस फसल को भाजपा चालाकी से राष्ट्रवाद एवं देशहित की हंसुआ से काट रहा है।
 यही  है वह लड़ाई एक वर्चस्व को और मजबूत करने के लिए और दूसरा वजुद बचाने के लिए लड़ रहा है। देश के सारे विश्वविद्यालय, समाचार पत्र, टीवी, ऑल सोशल मीडिया किसी न किसी पक्ष में खड़े हो लड़ रहे हैं।
     परंतु इस लड़ाई में  कांग्रेस घबराहट में लगातार गोल करती जा रही है, वह एक तो मजबूत सेनानायक के अभाव में सही रणनीति नहीं बना पा रही है और ना यह देख पा रही है की धर्मनिरपेक्षता धार्मिक सहिष्णुता, और जाति आधारित जिस चक्रव्यूह की रचना उसने कर रखी थी, उसे भाजपा ने राष्ट्रवाद, देशहित के बाण से भेद चुकी है । यह नीति उसे पुन जीवित नहीं कर सकता है।
    ज़ी टीवी के सुधीर चौधरी और रिपब्लिक भारत के अर्नब गोस्वामी पर किया गया एफ आई आर कांग्रेस के उसी घबराहट का नतीजा है, यह चाल कांग्रेस पर ही बैक फायर करेगा।

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