यूं तो भारतीय राजनीति में विपक्ष हमेशा बहुत कमजोर रहा है, कुछ अपवादों को छोड़कर, लेकिन आज जो स्थिति बन गई है, शायद कुछ अरसों के बाद कुछ राजनीतिक दल इतिहास बन जाएंगे , और बच्चे इतिहास में पढ़ेंगे कि यह राजनीतिक दल थे ।
जैसे बीएसपी , वाम दल, कांग्रेस इत्यादि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है अगर आप कारणों का विश्लेषण करने बैठेंगे तो जो मुख्य कारण दिखाई देगा वह है ।
1. राजनीतिक दलों का फैमिली प्राइवेट फॉर्म बन जाना
भारत के तमाम राजनीतिक दल जैसे कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, सपा , बसपा, जनता दल यूनाइटेड , आरजेडी, यह सभी राजनीतिक दल किसी खास राजनीतिक परिवारों के आगे पीछे घूमता है। इन दलों की राजनीतिक विचारधारा पार्टी सुप्रीमों के राजनीतिक जरूरतों के अनुसार बदलते रहती है। इन दलों में नेताओं और कार्यकर्ताओं की मंडली पार्टी सुप्रीमों की चापलूसी में लगे रहते हैं यहां पर सुप्रीमों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पहले आती है फिर उनकी नेताओं की महत्वाकांक्षा होती है इन महत्त्वकांक्षा के बीच में समाज और देशहित की आहुति पड़ती रहती है समय-समय पर पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने के लिए पार्टी सुप्रीमों द्वारा उभरते नेताओं की उपेक्षा की जाती है।
इस तरह के माहौल होने की वजह से पार्टी के अंदर कार्य संस्कृति और कार्यकर्ता संस्कृति बदल जाती है जिसके कारण एक दूसरी कमी उत्पन्न हो जाती है जिसे हम कहते हैं ज़मीनी हक़ीक़त से दूरी बन जाना ।
2. जमीनी हकीकत से दूरी बनाना :
तमाम राजनीतिक दलों का फैमिली प्राइवेट लिमिटेड फार्म में बदलने के कारण कार्यकर्ता संस्कृति भी बदलता चला गया,कार्यकर्ताओं एवं नेताओं का ध्यान जनता के बीच जाकर पार्टी की नीति सिद्धांत का फैलाव एवं जनता को अपने साथ जोड़ने के बजाय पार्टी की सुप्रीमो की चापलूसी एवं निजी हितों को साधने तक रह गया है नतीजतन पार्टी का जनाधार सिमटने लगा, पार्टी में नए नेताओं को उभरने से रोका जाने लगा, नेता और कार्यकर्ता एक दूसरे का कद पार्टी सुप्रीमो के नजरों में कम करने में लग गए और पार्टी सुप्रीमो ऐसे चापलूसओं की मंडली में फस गए जो जमीनी हकीकत को जानते ही नहीं है या जानते भी हैं तो अपना निजी हित टकराने के कारण पार्टी सुप्रीमो तक गलत सूचना पहुंचाने लगे।
3. दक्षिणपंथी पार्टी का उदय: भाजपा का उदय भी राजनीतिक दलों के पतन की ओर बढ़ने में अहम भूमिका निभा रही है,आक्रमक राष्ट्रवादी विचारधारा खुलकर बहुसंख्यक वर्ग का पक्ष लेना एक सूत्री राष्ट्रवादी विचारधारा से बंधा विशाल समर्पित कार्यकर्ताओं का समूह जो गांव-गांव तक लोगों को जोड़ने में लगे रहते हैं इन कार्यकर्ताओं को नियंत्रित एवं दिशा निर्देश देने के लिए विचारों का लंबा समूह जो हर घटना पर बारीक निगाह बनाये रखता है ,जिसके कारण विपक्षी दलों के आधार को जमीनी स्तर पर दीमक की तरह चाटे जा रहा है। एक विचारधारा की कमी और जमीनी स्तर की कार्यकर्ताओं की कमी के कारण तमाम विपक्षी दल भाजपा की बढ़त को रोक नहीं पा रहे हैं जिसकी वजह से सारे विपक्षी दलों में अपने अस्तित्व को लेकर घबराहट और बेचैनी छाते जा रही है। विपक्षी दलों के अंदर यह घबराहट और बेचैनी सिद्धांतविहीन नकारात्मक राजनीति का रूप ले रही है।
4. सिद्धांतविहीन नकारात्मक राजनीति: देश की कुछ पार्टी शुरू से घोषित तौर पर देश के बहुसंख्यक वर्ग को जात- पात, ऊंच-नीच, सर्वहारा, दलित मेवाती रही और सत्ता सुख भोगती रही परंतु परिवर्तन तो प्राकृतिक का नियम है।
समय के साथ वे कमजोर हुए बहुसंख्यक वर्ग से एक राजनीतिक विचारधारा उत्पन्न होती है ,जो खुलकर बहुत संख्या को की बात करती है। काफी स्पष्टता से करती है ऐसे में वर्षों से चला आ रहा राजनीतिक धारा जो कल-कल कर रही थी सूखने लगती है लाख कोशिश के बाद भी धारा दिनों-दिन पतली और पतली होती जा रही है, जिसके कारण एक घबराहट उत्पन्न हो गई है जो सिद्धांतविहीन, अवसरवादी एवं नकारात्मक राजनीति को जन्म दे रही है, जिसका उदाहरण है महाराष्ट्र में शिवसेना कांग्रेस गठबंधन सरकार जहां विचारधारा का कोई मेल नहीं है, एक पूर्व है तो दूसरा पश्चिम फिर भी साथ-साथ सिर्फ अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
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