Skip to main content

भारत के 7वें राष्‍ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की गांधी परिवार से तल्खी ।


इंदिरा ही नहीं राजीव से भी तल्‍ख थे राष्‍ट्रपति जैल सिंह के रिश्‍ते, बर्खास्‍त करनी चाही थी सरकार ।

भारत के 7वें राष्‍ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को इंदिरा गांधी का बेहत करीबी और वफादार माना जाता था। 25 जुलाई 1982 को उन्‍होंने पदभार संभाला था। जिस वक्‍त वो देश का 7वें राष्ट्रपति बने थे उस वक्त पंजाब में आतंकवाद चरम पर था। राष्‍ट्रपति बनने से वह पंजाब के मुख्यमंत्री के अलावा इंदिरा गांधी सरकार में वह गृहमंत्री भी रह चुके थे। इस दौरान उन पर भिंडरावाला को संरक्षण देने का भी आरोप लगा था। अपने राष्‍ट्रपति के कार्यकाल में जैल सिंह ने पार्टी से ज्‍यादा की भारतीय संविधान को तवज्जो दी। जैल सिंह ने इंदिरा गांधी द्वारा आंध्र प्रदेश एनटी रामाराव की सरकार को गिराए जाने का पुरजोर विरोध किया। उनके ही दबाव में आकर इंदिरा गांधी को एनटीआर की सरकार फिर से बहाल करनी पड़ी थी।

जैल सिंह और इंदिरा में तल्‍खी ।

जैल सिंह और इंदिरा गांधी के राजनीतिक तौर पर भले ही अच्‍छे थे लेकिन इनमें तल्‍खी भी कम नहीं थी। रामाराव के मसले पर दोनों के बीच मतभेद साफतौर पर सामने आया था। इतना ही नहीं 1984 में स्‍वर्ण मंदिर में चलाए गए ऑपरेशन ब्‍लूस्‍टार से भी वो आखिर तक अनभिज्ञ रहे। वर्ष 2014 में उनकी बेटी गुरदीप कौर ने एक इंटरव्‍यू में यहां तक कहा कि ऑपरेशन ब्लू स्टार एवं सिख विरोधी दंगों के समय ज्ञानी जैल सिंह बेबस और असहाय महसूस कर रहे थे। ऐसा बड़ा फैसला लेते समय उन्‍हें भरोसे में नहीं लिया गया था। इसको लेकर भी उन्‍होंने अपनी नाराजगी इंदिरा गांधी से जताई थी लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। ये तल्‍खी इतनी बढ़ गई थी कि कांग्रेस के अंदर ही उन्‍हें सफेद पगड़ी वाला अकाली बुलाया जाने लगा था। उनके मुताबिक सिख विरोधी विरोधी दंगों के समय ज्ञानी जैल सिंह ने पीएम हाउस, पीएमओ और गृह मंत्रालय में कई फोन किए, मगर किसी ने भी उनके फोन का जवाब नहीं दिया।

राष्ट्रपति की कार पर पथराव

इंदिरा गांधी की सिख बॉडीगार्ड द्वारा हत्‍या किए जाने की खबर तेजी से फैली थी। इस घटना के बाद तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति जैल सिंह एम्स अस्पताल में इंदिरा गांधी के शव को श्रद्धांजलि देकर अपनी कार से लौट रहे थे। इसी दौरान रास्ते में दंगाईयों की भीड़ ने राष्ट्रपति की कार पर पथराव कर दिया था। हालांकि उनके सुरक्षाकर्मी किसी तरह उन्हें दंगाईयों की भीड़ से सुरक्षित निकालने में कामयाब रहे थे।


राजीव से भी अधिक बेहतर नहीं थे रिश्‍ते 

इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी से उनके रिश्‍ते अधिक बेहतर नहीं थे। अर्जुन सिंह ने अपनी किताब 'ए ग्रेन ऑफ सेंड इन द ऑवरग्लास ऑफ टाइम' में लिखा कि जैल सिंह और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच नाराजगी इस कदर बढ़ गई थी कि वे राजीव गांधी की सरकार को बर्खास्त करने के लिए तैयार हो गए थे। सन 1987 में उन्होंने राजीव गांधी को हटाकर अर्जुन सिंह के समक्ष प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव रखा लेकिन अर्जुन ने उसे ठुकरा दिया था। जैल सिंह की ही बदौलत पोस्‍ट ऑफिस अमेंडमेंट बिल को उन्‍होंने वीटो पावर के जरिए रोक लिया था। इसके बाद वीपी सिंह की सरकार ने इसको वापस ले लिया था।

ज्ञानी जैल सिंह की जीवनी संक्षेप में।

जरनैल से यूं बने जैल सिंह
जैल सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत के फरीदकोट राज्य (वर्तमान पंजाब में) के ग्राम संघवान में 5 मई 1916 को हुआ। उनके पिता का नाम किशन सिंह और मां का नाम इंद्रा कौर था। बेहद कम लोग इस बात को जानते हैं कि जैल सिंह का पहले नाम जरनेल सिंह था। लेकिन एक बार उन्‍हें अंग्रेजों द्वारा कृपाण पर रोक लगाने के विरोध में जब जेल जाना पड़ा तो उन्‍होंने यहां पर गुस्‍से में अपना नाम जैल सिंह बताया। इसके बाद उनका नाम जरनेल से जैल सिंह हो गया था। इसी नाम से उन्‍हें ख्‍याति भी मिली।

मिली ज्ञानी की उपाधि
जैल सिंह की स्कूली शिक्षा भी कभी पूरी नहीं हो पाई। हालांकि उन्‍होंने उर्दू के अलावा गुरुमुखी सीखी थी। साधु संगत की वजह से उनका रुझान संगीत की तरफ हुआ और उन्‍होंने हारमोनियम बजाना सीखा। संगीत की शिक्षा के बाद अपने पिता के कहने पर उन्‍होंने गुरुद्वारे में गुरुवाणी और शबद का पाठ करना शुरू किया। बाद में वे ग्रंथी बने। यहां से ही उन्‍हें ज्ञानी की उपाधि मिली। शुरुआत में वे जवाहरलाल नेहरू के संपर्क में आए और फिर धीरे-धीरे कांग्रेस की विचारधारा से जुड़ते चले गए। 1972 में जैल सिंह पंजाब में कांग्रेस मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए। मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण कार्य किये जिनमें से एक स्वतंत्रता सेनानियों के लिए पेंशन योजना शुरू करना है। वे 1982 से 1987 तक देश के सातवें राष्‍ट्रपति रहे। 

निधन
ज्ञानी जैल सिंह का निधन 25 दिसंबर, 1994 को एक सड़क दुर्घटना में घायल होने के कारण हो गया था।

Comments

Popular posts from this blog

नया जीएसटी शुल्क: भारत की नई कर व्यवस्था

  नया जीएसटी शुल्क: भारत की नई कर व्यवस्था भारत में नया जीएसटी (जीएसटी) शुल्क का उदय होने के बाद, व्यापार और व्यावसायिक संस्थानों के लिए एक नई कर व्यवस्था का परिचय मिल रहा है। जीएसटी एक एकल वास्तविक कर व्यवस्था है जो राज्य कर और संघ कर को एकीकृत करती है। इसका मुख्य उद्देश्य व्यापार को सरल और अधिक व्यवसायकारी बनाना है। जीएसटी के फायदे: सरलीकरण: जीएसटी ने अनेक राज्य करों को एकीकृत कर दिया है, जिससे व्यापार को सरल और अधिक व्यवसायकारी बनाया गया है। व्यापार की वृद्धि: जीएसटी ने व्यापार को आकर्षित किया है और नई नीतियों के कारण व्यापार की गति बढ़ी है। कर राजस्व: जीएसटी ने कर राजस्व को बढ़ाने में भी योगदान दिया है। जीएसटी के चुनौतियां: जटिलता: जीएसटी के नियम और विनियमन के कारण कुछ व्यापारियों को जटिलता का सामना करना पड़ा है। आर्थिक अस्थिरता: जीएसटी के लिए नई नीतियां और अनुभागों का अनुसन्धान करना आर्थिक अस्थिरता का कारण बन सकता है। जीएसटी भारत के व्यापार और अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसके साथ-साथ चुनौतियां भी हैं, जिन्हें समय के साथ सुलझाया जा रहा है।

Selective politics in India

   चयनात्मक प्रदर्शन मनोविज्ञान के अंदर एक सिद्धांत है,जिसे अक्सर मीडिया और संचार अनुसंधान में प्रयोग किया जाता है।     यह ऐसे लोगों की प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है। जो विरोधाभासी जानकारी से बचते हुए, अपने पहले से मौजूद विचारों को व्यक्त करते है।     अगर भारत के संदर्भ में बात करें,तो भारत में लगभग हर राजनीतिक दल कहीं ना कहीं सिलेक्टिव पॉलिटिक्स का सहारा लेती है। चाहे वह कांग्रेस पार्टी हो या वाम दल हो या फिर भाजपा हो, लेकिन इन सभी दलों के सिलेक्टिव पॉलिटिक्स से थोड़ा अलग सिलेक्टिव पॉलिटिक्स सिस्टम भाजपा का है, जहां आकर सभी दूसरे राजनीतिक दल सियासी मात खा जाते हैं।  भारतीय राजनीति में सिलेक्टिव पॉलिटिक्स शब्द को एक गर्म राजनीतिक बहस के केंद्र में लाने का श्रेय भी भाजपा को जाता है।  विगत कुछ वर्षों में  जब से भाजपा सत्ता में आई है, कई अहम राजनीतिक फैसलों के समय यह बहस के केंद्र में आ जाता है।  कश्मीर से धारा 370 हटाने के क्रम में कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला को नज़रबंद किया गया तो क...

क्या पीएम मोदी तानाशाह हैं ?

  पिछले कुछ समय से भारतीय राजनीतिक दल, नेता, पत्रकार और कुछ राजनीतिक विश्लेषक एक वाक्य गढ़ रहे हैं " पीएम मोदी तानाशाह हैं" प्रधानमंत्री   नरेंद्र   मोदी   तानाशाह   हैं   या   नहीं , यह   विचार   का   विषय   है।   बड़ी संख्या में लोग ऐसा सोचते है   कि   वह   एक   मजबूत   नेता   हैं   जो   भारत   के   सर्वोत्तम   हित   में   कठोर   निर्णय   ले   रहे   हैं , जबकि   अन्य   लोगों   का   मानना   ​​ है   कि   वह   तेजी   से   सत्तावादी   होते   जा   रहे   हैं   और   असहमति   को   दबा   रहे   हैं। मेरी   राय   में   पीएम   मोदी   एक   तानाशाह   हैं   यह   उनके   लिए   इस्तेमाल   किया   जाने   वाला   सही   शब्द   नहीं   है   क्योंकि   तानाशाह   शब्द ...